संकलन: आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’राजा भोज का एक बड़ा गैरजिम्मेदार मंत्री था। आए दिन कभी उसकी गैरजिम्मेदारी की, तो कभी लोगों को सताने की शिकायतें आतीं। एक दिन राजा भोज ने उसे सीख देने की सोची। उसने उसके साथ एक और मंत्री को बुलाया, जो जिम्मेदार और दयालु था। राजा ने दोनों को आदेश दिया कि वे थैला लेकर बागीचे में जाएं और वहां से अच्छे-अच्छे फल जमा करें। आदेश मिलते ही दोनों मंत्री थैला लेकर अलग-अलग बाग में गए। पहले मंत्री ने अपना थैले में राजा की पसंद के अच्छे और मीठे फल जमा किए। उसने काफी मेहनत के बाद ताजा फलों से अपना थैला भर लिया।पीएम मोदी ने की गुजरात के इस मंदिर की तारीफ, जानें खास बातेंवहीं दूसरे गैरजिम्मेदार मंत्री ने सोचा कि राजा हर फल तो जांचेगा नहीं, इसलिए उसने जल्दी-जल्दी अपने थैले में ताजा, कच्चे, सड़े-गले फल भी भर लिए। दूसरे दिन राजा भोज ने दोनों मंत्रियों को बुलाया। वे पहुंचे तो राजा ने बगैर उनका थैला खोले आदेश दिया कि उन्हें थैलों समेत कैद कर दिया जाए। अब जेल में दोनों मंत्रियों के पास खाने-पीने को कुछ भी नहीं था, सिवाय उन फलों के। जिस मंत्री ने अच्छे-अच्छे फल जमा किए, वह तो मजे से फल खाता रहा। वहीं दूसरे मंत्री को खराब फल खाने पड़े और कुछ दिनों में वह मरणासन्न हो गया।ये 5 दिन बहुत ही शुभ, देवी लक्ष्मी की पा सकते हैं खास कृपाउसके मरणासन्न होने की सूचना राजा भोज तक पहुंची, तो उन्होंने तुरंत दोनों को आजाद करने का आदेश दिया। गैरजिम्मेदार मंत्री जब ठीक होकर वापस दरबार पहुंचा तो राजा भोज बोले, ‘अब आपको समझ में आया कि हम सब इस ‘समय’ रूपी जीवन के बाग में हैं। चाहें तो हम अपने किए अच्छे कर्म जमा करें या चाहें तो अपने किए बुरे कर्म। जो भी हम जमा करेंगे, वही आखरी समय में हमारे काम आएगा। क्योंकि दुनिया में जो करना है, वह यहीं पर भरना भी है।’
Source: Navbharat Times August 27, 2020 05:03 UTC