बेगम अख्तर उर्फ अख्तरी फैजाबाद उस दिन बंबई के एक संगीत जलसे में शरीक हुई। वहां उन्होंने अपने दादरा और गजल से महफिल लूट ली। अगले दिन उनको लखनऊ जाना था, सो अगले दिन वे अपने साजिंदों के साथ लखनऊ की ट्रेन पकड़ने वीटी स्टेशन (अब सीएसएमटी स्टेशन) पहुंचीं। ट्रेन में बैठकर वे गाड़ी खुलने का इंतजार कर रही थीं। तभी अख्तरी फैजाबादी को ढूंढ़ते हुए उस दौर के एक उभरते शायर वीटी स्टेशन पहुंचे।शायर साहब ट्रेन के हर कोच में झांकते हुए आगे बढ़ रहे थे। अचानक शायर की नजर ट्रेन की एक खिड़की के पास बैठी बेगम अख्तर पर गई। तभी ट्रेन खुलने का सिग्नल हो गया। शायर जल्दी से उनकी खिड़की पर पहुंचा। उनके और बेगम के बीच दुआ-सलाम हुई। शायर ने अपनी जेब से एक कागज का पन्ना उनकी तरफ बढ़ाया। तभी ट्रेन खुल गई। बेगम ने उस कागज को बिना देखे अपने बटुए में रख दिया। रात भर ट्रेन चलती रही। जब ट्रेन सुबह भोपाल पहुंची तो चाय की चुस्की लेते हुए बेगम अख्तर को बटुए में रखा कागज का वह पन्ना याद आया।बेगम ने कागज खोलकर देखा और उसमें लिखी गजल को राग भैरवी में गुनगुनाने लगीं। वो गजल थी- ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया।’ लखनऊ पहुंचने से पहले, ट्रेन में ही उन्होंने हारमोनियम पर पूरी गजल कॉम्पोज कर दी । लखनऊ के ऑल इंडिया रेडियो पर बेगम अख्तर का प्रोग्राम था। खासतौर पर जब उन्होंने यह गजल गायी, तो सुरीला इंकलाब आ गया। आखिरी लाइन जब लोगों ने सुनी- ‘जब हुआ जिक्र जमाने में मोहब्बत का शकील…’, तब लोगों को पता चला कि इस गजल के शायर शकील बदांयूनी हैं। वीटी स्टेशन पर बेगम अख्तर को कागज थमाने वाले शायर शकील बदांयूनी ही थे। यह गजल बाद में गजल संसार की सिग्नेचर ट्यून बन गई।संकलन : धर्मेंद्र नाथ ओझा
Source: Navbharat Times September 15, 2020 06:00 UTC