सुनील चौधरी, सांबा। शंकर सिंह के बेटे लखविंदर सिंह ने 1999 में टाइगर हिल पर दुश्मन से लोहा लेते हुई वीरगति पाई थी। लखविंदर सिख रेजीमेंट में तैनात थे। आज शहीद लखविंदर सिंह का बड़ा बेटा सतविंदर सिंह इसी रेजीमेंट में अपनी सेवाएं दे रहा है और छोटा बेटा सेना में भर्ती होने की तैयारी में है।कारगिल युद्ध में बेटा देश की रक्षा करते हुए कुर्बान हो गया। अब पोते को देश की सरहदों की हिफाजत के लिए सेना में भेज दिया है। वयोवृद्ध शंकर सिंह का दूसरा पोता भी सेना में जाने की तैयारी कर रहा है। बूढ़े दादा-दादी और बेटों की मां को सुकून है कि शहीद लखविंदर की शहादत को इससे बढ़कर श्रद्धांजलि और क्या होगी..। दुनियाभर में देशभक्तिका ऐसा अद्भुत जज्बा शायद ही कहीं और देखने को मिले। यह जज्बा यूं ही नहीं आता। खुद भी सीमा सुरक्षा बल से बतौर इंस्पेक्टर सेवानिवृत हुए शंकर सिंह के परिवार की चौथी पीढ़ी देश सेवा में जुटी हुई है।पिता की बहादुरी के किस्से सुनकर हुए बड़ेजम्मू कश्मीर के सांबा जिले के सीमावर्ती सारथी खुर्द गांव के शंकर सिंह के सुपुत्र लखविंदर सिंह कारगिल युद्ध के समय पठानकोट में सेना की आठ, सिख रेजीमेंट में बतौर सिपाही तैनात थे। लड़ाई शुरू होते ही उन्हें टाइगर हिल पर भेजा गया। छह जुलाई को टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सैनिकों के साथ लोहा लेते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। यह परिवार के लिए गहरा आघात था, लेकिन पिता शंकर सिंह ने परिवार की फौजी परंपरा को टूटने नहीं दिया। शंकर सिंह और उनकी पत्नी कुलदीप कौर ने दोनों पोतों में भी देशभक्ति के जज्बे को कूट-कूट कर भरा। शहीद की पत्नी बलजीत कौर ने भी दोनों बच्चों को उनके पिता की बहादुरी के किस्से सुनाकर बड़ा किया। इसी त्याग और बलिदान की बदौलत आज शहीद का बड़ा बेटा सतविंदर सिंह भी सिख रेजीमेंट में तैनात है। अपने पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए देश की रक्षा कर रहा है। वहीं, शहीद का छोटा बेटा परविंदर सिंह भी सेना में भर्ती होने की तैयारी कर रहा है।तीनों बेटे फौजीशंकर सिंह के तीनों बेटे फौज में भर्ती हुए थे। लखविंदर सिंह कारगिल में शहीद हुए और दूसरे बेटे की सेना में नौकरी के दौरान अस्वस्थता से मृत्यु हो गई थी। तीसरा बेटा ओमकार सिंह इस समय 13, सिख रेजीमेंट में तैनात है। शंकर सिंह के पिता वीर सिंह भी सेना की जेक राइफल के जवान थे। शहीद लखविंदर को सेना में जाने की प्रेरणा अपने दादा से ही मिली थी।पोतों को भी बनाया बहादुरशहीद लखविंदर सिंह के पिता शंकर सिंह ने बताया, लखविंदर का बचपन से ही सेना में भर्ती होने का सपना था। 1990 में वह सेना में भर्ती हो गए। 1994 में बलजीत कौर से शादी हुई। शादी के पांच वर्ष बाद ही लखविंदर देश की सेवा करते करते शहीद हो गए थे। शंकर सिंह ने कहा कि हमें अपने बेटे की बहादुरी पर गर्व है। इसलिए हमने अपने पोतों को भी बहादुर बनाया है, ताकि वे भी देश की सेवा कर सकें।हमेशा चिट्ठी में लिखता था, अपना ख्याल रखना मां...शहीद की मां कुलदीप कौर ने बताया कि लखविंदर अपनी हर चिट्ठी में उन्हें अपना ख्याल रखने के लिए कहते थे। खुद के बारे में यही कहते थे कि वे ठीक हैं और उनकी फिक्र न करना। वहीं पत्नी बलजीत कौर की आंखों के आंसू आज भी नहीं सूखे हैं। बावजूद इसके, वह दोनों बेटों को अपने पूर्वजों की तरह देश की रक्षा करते देखना चाहती हैं।Posted By: Manish Pandey
Source: Dainik Jagran July 21, 2019 05:03 UTC