इस तरह बाथरूम में प्रयोगशाला बनाकर बनें प्रसिद्ध वैज्ञान‍िक और की पौधों में संवेदना की खोज - News Summed Up

इस तरह बाथरूम में प्रयोगशाला बनाकर बनें प्रसिद्ध वैज्ञान‍िक और की पौधों में संवेदना की खोज


जगदीश चंद्र बोस ने 1884 में कैंब्रिज से पढ़ाई पूरी कर ली। स्वदेश लौटते समय वहीं के अर्थशास्त्री फासेट ने भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रिपन को पत्र लिखा तो रिपन ने बोस को प्रेसीडेंसी कॉलेज में नियुक्ति के लिए संस्तुति दे दी। कॉलेज के प्रिंसिपल को न चाहते हुए भी भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में उनकी नियुक्ति करनी पड़ी। लेकिन कॉलेज में एक यूरोपीय अध्यापक को तीन सौ रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था, तो बोस को महज सौ रुपए।बोस ने इसका विरोध किया और समान वेतन की मांग की। जब मांग नहीं मानी गई, तो उन्होंने वेतन लेने से मना कर दिया, मगर कॉलेज में पढ़ाते रहे। अध्यापन कौशल के चलते विद्यार्थियों के बीच वे जल्द ही लोकप्रिय हो गए। मातृभाषा में स्कूली शिक्षा और अंग्रेजी में उच्च शिक्षा के कारण वे भौतिक विज्ञान को इतनी सरलता के साथ दोनों भाषाओं में समझाते थे, कि भौतिक विज्ञान विद्यार्थियों को सरल लगने लगा। बचे-खुचे संदेह को वे प्रयोगों से स्पष्ट कर देते थे। आखिरकार उनके विरोध के समक्ष प्रिंसिपल को झुकना ही पड़ा और उन्हें पहले के एरियर के साथ ही सबके समान वेतन मिलने लगा।बोस की इस सफलता से उनके सहकर्मियों को और ईर्ष्या हुई। जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें प्रयोगशाला के आवंटन में बाधा डाली जाने लगी। इससे मुक्ति पाने के लिए बोस ने चौबीस वर्ग फुट के बाथरूम में ही अपनी प्रयोगशाला बना ली, और प्रयोगों के द्वारा विद्यार्थियों को न केवल सफल बनाते रहे, बल्कि इसी प्रयोगशाला के बल पर वैज्ञानिक बनने का सपना भी साकार किया। मानवीय सरोकारों के कारण वे अपने वायरलेस रेडियो की खोज को तो पेटेंट नहीं करा पाए, पर पौधों में संवेदना की खोज करके अमर हो गए। सच है कि अगर इरादे पक्के हों तो कोई काम मुश्किल नहीं है।संकलन : हरिप्रसाद राय


Source: Navbharat Times March 31, 2021 05:03 UTC



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