संकलन: हरिप्रसाद रायप्लेग की वैश्विक महामारी ने जहां एक तरफ सर आइजक न्यूटन को थियरी ऑफ ग्रैविटी की खोज का मौका दिया, तो दूसरी तरफ परिवार, दोस्तों और स्कूली शिक्षकों की उपेक्षा के चलते जिद्दी बन चुके अल्बर्ट आइंस्टाइन के लिए इस सिद्धांत के प्रतिस्थापन का मार्ग प्रशस्त किया। मानवता के पक्षधर, उग्रता के विरोधी अल्बर्ट आइंस्टाइन किसी एक देश के नागरिक नहीं रहे और न ही कभी किसी जाति, समूह या धर्म विशेष के पोषक बने।साप्ताहिक राशिफल: सूर्य का राशि परिवर्तन इन राशियों का चमकाएगा भाग्यसापेक्षता के सिद्धांत के प्रतिपादन के बाद उन्हें अमेरिका के विश्वविद्यालयों में लेक्चर देने के लिए बुलाया जाने लगा। उनकी बातें अमेरिका में जड़ जमा रही थीं। कभी-कभी तो वह दिन में तीन से चार जगहों पर लेक्चर देते। उनका हर लेक्चर उनका ड्राइवर हैरी सभा में सबसे पीछे की कतार में बैठकर बड़े ध्यान से सुनता। सुनते-सुनते उसे आइंस्टाइन का पूरा लेक्चर याद हो गया। आइंस्टाइन से दोस्ताना संबंध होने के चलते उसने एक दिन उनसे कहा, ‘आप जो लेक्चर देते हैं, मौका मिले तो वह मैं भी दे सकता हूं’।साप्ताहिक लव राशिफल: सूर्य का राशि परिवर्तन इन राशियों की लव लाइफ को देगा शुभ समाचारब्राउन यूनिवर्सिटी में आइंस्टाइन का एक ऐसा ही लेक्चर होना था। उस दिन उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। उन्होंने अपने ड्राइवर से कहा, ‘हैरी, ब्राउन यूनिवर्सिटी में मुझे कोई नहीं पहचानता। आज तुम मेरी टोपी पहनकर लेक्चर दे सकते हो क्या?’ हैरी तैयार हो गया और उसने बिल्कुल वैसा ही लेक्चर दिया। सभा में मौजूद आइंस्टाइन लेक्चर सुनते रहे। लेक्चर पूरा होने पर एक मुश्किल सवाल हैरी के सामने आया, जिसका उत्तर वह नहीं दे सकता था। अचानक उसे आइडिया सूझा और आइंस्टाइन की ओर इशारा करके वह बोला, ‘इसका जबाव तो मेरा ड्राइवर दे देगा’। आइंस्टाइन ने बड़ी सरलता से जबाब दिया। इस प्रकार दोनों ने आपसी सहयोग से सिद्ध किया कि मालिक और नौकर के बीच सामंजस्य हो, तो जटिल काम भी सरल हो जाते हैं।
Source: Navbharat Times August 16, 2021 04:52 UTC