देखिए किस तरह इस भक्त का वरदान बन गया अभिशाप - News Summed Up

देखिए किस तरह इस भक्त का वरदान बन गया अभिशाप


हरिश बड़थ्वालमंजिल तक पहुंचने के लिए दहकती हुई चाहत आवश्यक है। चाहत प्रबल होने पर ही सोई हुई शक्तियां जागती हैं, ब्रह्मांड की शक्तियां सहयोग देती हैं और मनोवांछित फल मिल जाता है। इस बाबत हमें भली-भांति विचार करना चाहिए। लोभ से प्रेरित एक भक्त की अपार साधना से अभिभूत होकर प्रभु बोले, ‘वत्स! कहो, क्या चाहते हो?’ भक्त ने इच्छा व्यक्त की, ‘जिस भी वस्तु को मैं स्पर्श करूं, वह सोने की हो जाए’। उस भक्त का हश्र आप जानते हैं। उसे मिला वरदान अभिशाप बन गया था। उस वरदान को निरस्त करने के लिए प्रभु से उसे फिर याचना करनी पड़ी थी।पीएम मोदी ने की गुजरात के इस मंदिर की तारीफ, जानें खास बातेंक्या वे धन्य हो गए जिनकी पदोन्नति में रुकावट, व्यापार में घाटा, बेटी के मेडिकल में प्रवेश में विफलता, बेटे को शीघ्र मोटे पैकेज की नौकरी न मिलने जैसी बाधाएं दूर हो गईं? फलां कार्य फलीभूत होने पर सदा के लिए जीवन में बहार आ जाएगी, इस भ्रांति से जितना शीघ्र बाहर आएंगे, सुख-चैन उसी अनुपात में रहेगा। जो चीजें आपके पास नहीं हैं, उनकी लालसा बनी रहेगी, तो उन चीजों के आनंद से वंचित हो जाएंगे, जो आपके पास हैं। अपने सर्वोत्तम, दीर्घकालीन हित में क्या है, इसका स्पष्ट ज्ञान नहीं होगा, तो जो मिलेगा, वह दुख का कारण बन सकता है। विकृत व्यवहार, कदाचार और अपराध का मूल वैचारिक, आध्यात्मिक या अन्य कोटि की विपन्नता है। स्वयं को प्रभु का अंश समझेंगे, तो स्वयं में निहित अपार सामर्थ्य और संपन्नता का अहसास रहेगा। तब सांसारिक इच्छाएं क्षीण हो जाएंगी और भौतिक अस्मिताओं के छिन जाने का दुख भी असह्य न होगा।दूसरी ओर, वर्षों से जिन सपनों की खातिर आपने सब-कुछ दांव पर लगा दिया, वह प्राप्त होने के बावजूद तुष्टि नहीं मिलने का अर्थ है कि वह चाहत आपकी वास्तविक जरूरत के अनुकूल नहीं थी, यानी चाहत का चयन सुविचार से नहीं किया गया था। सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति होने पर क्षणिक संतुष्टि भले ही मिल जाए, किंतु अपेक्षाएं धरी रह जाती हैं। वैसे ही, जैसे मोटी पगार पाने वाली संतानों पर इतराते, उन्हें सर-आंखों पर रखते माता-पिता संतति द्वारा अपेक्षाओं पर पानी फेर देने से औंधे मुंह गिरते हैं। जिंदगी से क्या चाहिए, दुनिया में किससे क्या और कितना चाहिए, इस बाबत स्पष्टता रहे, तो मोह भंग और हताशा की नौबत नहीं आएगी। इच्छाएं, आकांक्षाएं संजोते समय जान लें कि चूंकि प्रभु ने हमें किसी निर्धारित प्रयोजन से इहलोक में भेजा है, इसलिए उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य किए जाएं, तभी उनसे रस मिलेगा। उस परमपिता में अडिग आस्था के रहते जीवन की बाधाओं और कठिनाइयों से विचलित नहीं होंगे। बेहतर होगा, प्रभु के दिए उपहारों की सूची बनाएं। संपूर्ण स्वस्थ शरीर, परिवार जन, मित्र, आजीविका का साधन, रहने को छत, दो जून का सुनिश्चित भोजन, कुछ भी करने की अथाह सामर्थ्य। प्रभु या कहीं और से कुछ मांगने से पूर्व विचार करें, कहीं कोई व्यर्थ की वस्तु तो नहीं मांग रहे।ये 5 दिन बहुत ही शुभ, देवी लक्ष्मी की पा सकते हैं खास कृपायाद रहे, अनेक व्यक्तियों के रोल मॉडल हैं आप। वे तरसते हैं कि काश वे आपकी स्थिति में होते! आपकी उपलब्धियों से कहीं अधिक अहम वह दिशा है, जिस ओर आप अग्रसर हैं। दिशा बोध रहेगा, तभी मंजिल तक ठीक पहुंचेंगे। बहुत से निष्ठावान, कर्मठ व्यक्ति अथक प्रयासों के बावजूद अपने गंतव्य तक इसलिए नहीं पहुंचे, क्योंकि उन्हें गंतव्य के बाबत स्पष्टता नहीं रही। सफलता के लिए दिशा उतनी ही अहम है जितनी कर्मठता और लगन। दिशा सही रहेगी तो विकार और त्रुटियां भी कालांतर में निराकृत होते जाएंगे। और जब दिशा प्रभु की ओर हो, तो बहारें आएंगी ही।


Source: Navbharat Times August 27, 2020 05:03 UTC



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